Top 70 Chalisa Sangrah: सभी देवी-देवताओं का चालीसा संग्रह
Top 70 Chalisa Sangrah: सभी देवी-देवताओं का चालीसा संग्रह। हमारे हिंदू धर्म में अनेक देवी – देवताएं हैं, उन सब का चालीसा पाठ उपलब्ध है। चालीसा पाठ के माध्यम से हम अपने आराध्य का आराधना और उन्हें प्रसन्न बड़ी आसानी से कर सकते हैं।
चालीसा पाठ में संबंधित देवी देवताओं का उनके शौर्य पराक्रम उनके उदारता उनके स्तुति सभी सरल रूप में दिया रहता है। इन्हीं कारणों से चालीसा पाठ सभी देवी देवताओं की पूजा आराधना में विशेष स्थान रखता है।
आज के लेख में हम आप सभी के लिए सभी देवी देवताओं का चालीसा पाठ उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे हैं।
Top 70 Chalisa Sangrah चालीसा संग्रह
नीचे सभी चालीसा का नाम क्रमवार लिखा हुआ है, आप जिस भी देवी देवता या जिसका भी आप चालीसा पाठ पढ़ना चाहते हैं तो उस पर क्लिक करके आप वह चालीसा पढ़ सकते हैं :-
5. गणेश चालीसा
6. कृष्ण चालीसा
7. राम चालीसा
8. साईं चालीसा
10. काली चालीसा
11. सरस्वती चालीसा
12. भैरव चालीसा
13. शनि चालीसा
14. सूर्य चालीसा
15. महावीर चालीसा
16. लक्ष्मी चालीसा
17. महाकाली चालीसा
18. तुलसी चालीसा
19. बगलामुखी चालीसा
20. गोरखनाथ चालीसा
21. गोपाल चालीसा
22. नवग्रह चालीसा
27. परशुराम चालीसा
28. ललिता चालीसा
29. शारदा चालीसा
30. राधा चालीसा
31. गिरिराज चालीसा
32. नर्मदा चालीसा
33. गंगा चालीसा
34. ब्रह्मा चालीसा
35. कुबेर चलीसा
36. नरसिंह चालीसा
37. शीतला चालीसा
38. यमुना चालीसा
40. बाला जी चालीसा
41. बटुक भैरव चालीसा
42. प्रेतराज चालीसा
47. वीरभद्र चालीसा
48. मनसा देवी चालीसा
50. झूलेलाल चालीसा
51. सत्य साई चालीस
52. करणी चालीसा
53. रविदास चालीसा
54. पार्वती चालीसा
55. रामदेव चालीसा
56. पितर चालीसा
59. शाकम्भरी चालीसा
62. विनय चालीसा – नीम करौली बाबा
63. गुरु चालीसा
64. नैना देवी चालीसा
65. जीण माता चालीसा
66. ज्वाला चालीसा
67. कैला चालीसा
68.गोलू चालीसा
69. मेहर चालीसा
70. कामाख्या चालीसा
73. श्री प्रेतराज सरकार की चालीसा
आइए दोस्तों अब कुछ चालीसा का पाठ इसी पेज पर जानते हैं
1. श्री हनुमान चालीसा
( श्री हनुमान चालीसा लिरिक्स विडियो )
।। दोहा ।।
श्री गुरुचरण सरोज रज , निज मन मुकुरु सुधारि ।
बरनऊॅ रघुबर विमल जसु , जो दायक फल चारि ।।1
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि विद्या देहु मोहिं , हरहु कलेस बिकार ।।2
।। चौपाई ।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीश तिहुॅ लोक उजागर ।।1
राम-दुत अतुलित बलधामा ।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ।।2
महाबीर विक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ।।3
कंचन बरण बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुंचित केसा ।।4
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
कॉधे मूॅज जनेऊ साजै ।।5
शंकर-सुवन केशरी-नंदन ।
तेज प्रताप महा जग-वंदन ।।6
विद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ।।7
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ।।8
सुक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ।।9
भीम रूप धरि असुर संहारे ।
रामचंद्र के काज संवारे ।।10
लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ।।11
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।12
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ।।13
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ।।14
जम कुबेर दिगपाल जहां ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते ।।15
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ।।16
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना ।
लंकेस्वर भए सब जग जाना ।।17
जुग सहस्र योजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।18
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ।।19
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।20
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।21
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डर ना ।।22
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हांक तें कांपै ।।23
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ।।24
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ।।25
संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।।26
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ।।27
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ।।28
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ।।29
साधु-संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ।।30
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ।।31
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ।।32
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।33
अंतकाल रघुबर पुर जाई ।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई ।।34
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ।।35
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।36
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ।।37
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छुटहि बंदि महा सुख होई ।।38
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ।।39
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा ।।40
।। दोहा ।।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।
2. श्री शिव चालीसा
( श्री शिव चालीसा विडियो )
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
।। चौपाई ।।
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥1
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥2
अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन छार लगाये॥3
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥4
मैना मातु की ह्वै दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥5
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥6
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥7
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥8
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥9
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥10
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥11
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥12
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥13
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥14
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥15
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥16
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।
जरे सुरासुर भये विहाला॥17
कीन्ह दया तहँ करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥18
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥19
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥20
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥21
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥22
जय जय जय अनंत अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥23
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥24
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
यहि अवसर मोहि आन उबारो॥25
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट से मोहि आन उबारो॥26
मातु पिता भ्राता सब कोई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥27
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु अब संकट भारी॥28
धन निर्धन को देत सदाहीं।
जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥29
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥30
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥31
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
नारद शारद शीश नवावैं॥32
नमो नमो जय नमो शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥33
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पार होत है शम्भु सहाई॥34
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥35
पुत्र हीन कर इच्छा कोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥36
पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥37
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।
तन नहीं ताके रहे कलेशा॥38
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥39
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्तवास शिवपुर में पावे॥40
कहे अयोध्या आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥41
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥1
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥2
3. श्री काली चालीसा
( श्री काली चालीसा विडियो )
।। दोहा ।।
जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार।
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ॥
।। चौपाई ।।
अरि मद मान मिटावन हारी ।
मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥1
अष्टभुजी सुखदायक माता ।
दुष्टदलन जग में विख्याता ॥2
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै ।
कर में शीश शत्रु का साजै ॥3
दूजे हाथ लिए मधु प्याला ।
हाथ तीसरे सोहत भाला ॥4
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे ।
छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥5
सप्तम करदमकत असि प्यारी ।
शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥6
अष्टम कर भक्तन वर दाता ।
जग मनहरण रूप ये माता ॥7
भक्तन में अनुरक्त भवानी ।
निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥8
महशक्ति अति प्रबल पुनीता ।
तू ही काली तू ही सीता ॥9
पतित तारिणी हे जग पालक ।
कल्याणी पापी कुल घालक ॥10
शेष सुरेश न पावत पारा ।
गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥11
तुम समान दाता नहिं दूजा ।
विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥12
रूप भयंकर जब तुम धारा ।
दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥13
नाम अनेकन मात तुम्हारे ।
भक्तजनों के संकट टारे ॥14
कलि के कष्ट कलेशन हरनी ।
भव भय मोचन मंगल करनी ॥15
महिमा अगम वेद यश गावैं ।
नारद शारद पार न पावैं ॥16
भू पर भार बढ्यौ जब भारी ।
तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥17
आदि अनादि अभय वरदाता ।
विश्वविदित भव संकट त्राता ॥18
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा ।
उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥19
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा ।
काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥20
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे ।
अरि हित रूप भयानक धारे ॥21
सेवक लांगुर रहत अगारी ।
चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥22
त्रेता में रघुवर हित आई ।
दशकंधर की सैन नसाई ॥23
खेला रण का खेल निराला ।
भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥24
रौद्र रूप लखि दानव भागे ।
कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥25
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो ।
स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥26
ये बालक लखि शंकर आए ।
राह रोक चरनन में धाए ॥27
तब मुख जीभ निकर जो आई ।
यही रूप प्रचलित है माई ॥28
बाढ्यो महिषासुर मद भारी ।
पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥29
करूण पुकार सुनी भक्तन की ।
पीर मिटावन हित जन-जन की ॥30
तब प्रगटी निज सैन समेता ।
नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥31
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं ।
तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥32
मान मथनहारी खल दल के ।
सदा सहायक भक्त विकल के ॥33
दीन विहीन करैं नित सेवा ।
पावैं मनवांछित फल मेवा ॥34
संकट में जो सुमिरन करहीं ।
उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥35
प्रेम सहित जो कीरति गावैं ।
भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥36
काली चालीसा जो पढ़हीं ।
स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥37
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा ।
केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥38
करहु मातु भक्तन रखवाली ।
जयति जयति काली कंकाली ॥39
सेवक दीन अनाथ अनारी ।
भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥40
।। दोहा ।।
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥
4. श्री गणेश चालीसा
( श्री गणेश चालीसा विडियो )
।। दोहा ।।
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥ 1
।। चौपाई ।।
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभ काजू ।। 1
जय गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायक बुद्घि विधाता ॥ 2
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥ 3
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥ 4
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥ 5
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥ 6
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता ।
गौरी ललन विश्व-विख्याता ॥ 7
ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे ।
मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥ 8
कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी ।
अति शुचि पावन मंगलकारी ॥ 9
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥ 10
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ।। 11
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥ 12
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥ 13
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥ 14
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥ 15
अस कहि अन्तर्धान रुप है ।
पलना पर बालक स्वरुप है ॥ 16
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥ 17
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥ 18
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥ 19
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ 20
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥ 21
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।
उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥ 22
कहन लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥ 23
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।
शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥ 24
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥ 25
गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी ।
सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥ 26
हाहाकार मच्यो कैलाशा ।
शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥ 27
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥ 28
बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो ॥ 29
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥ 30
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥ 31
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥ 32
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥ 33
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥ 34
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥ 35
मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥ 36
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥ 37
अब प्रभु दया दीन पर कीजै ।
अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥ 38
।। दोहा ।।
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ।।1
सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ।। 2
5. श्री विष्णु चालीसा
( श्री विष्णु चालीसा विडियो )
दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय.
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय.
चौपाई
नमो विष्णु भगवान खरारी
कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी
त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत
सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥
तन पर पीतांबर अति सोहत
बैजन्ती माला मन मोहत॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे
देखत दैत्य असुर दल भाजे॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे
काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
संतभक्त सज्जन मनरंजन
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन
दोष मिटाय करत जन सज्जन॥
पाप काट भव सिंधु उतारण
कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण
केवल आप भक्ति के कारण॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा
तब तुम रूप राम का धारा॥
भार उतार असुर दल मारा
रावण आदिक को संहारा॥
आप वराह रूप बनाया
हरण्याक्ष को मार गिराया॥
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया
चौदह रतनन को निकलाया॥
अमिलख असुरन द्वंद मचाया
रूप मोहनी आप दिखाया॥
देवन को अमृत पान कराया
असुरन को छवि से बहलाया॥
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया
मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया
भस्मासुर को रूप दिखाया॥
वेदन को जब असुर डुबाया
कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया॥
मोहित बनकर खलहि नचाया
उसही कर से भस्म कराया॥
असुर जलंधर अति बलदाई
शंकर से उन कीन्ह लडाई॥
हार पार शिव सकल बनाई
कीन सती से छल खल जाई॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी
बतलाई सब विपत कहानी॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी
वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥
देखत तीन दनुज शैतानी
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी
हना असुर उर शिव शैतानी॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे
हिरणाकुश आदिक खल मारे॥
गणिका और अजामिल तारे
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥
हरहु सकल संताप हमारे
कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे
दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥
चहत आपका सेवक दर्शन
करहु दया अपनी मधुसूदन॥
जानूं नहीं योग्य जप पूजन
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥
करहुं आपका किस विधि पूजन
कुमति विलोक होत दुख भीषण॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण
कौन भांति मैं करहु समर्पण॥
सुर मुनि करत सदा सेवकाई
हर्षित रहत परम गति पाई॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई
निज जन जान लेव अपनाई॥
पाप दोष संताप नशाओ
भव-बंधन से मुक्त कराओ॥
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ
निज चरनन का दास बनाओ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥
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