Annapurna Mata ki Aarti: श्री अन्नपुर्णा माता की आरती व चालीसा पाठ

श्री अन्नपुर्णा माता की आरती हिंदी व अंग्रेजी में तथा श्री अन्नपुर्णा माता की चालीसा।

1. श्री अन्नपुर्णा माता की आरती – हिंदी में

बारम्बार प्रणाम मैया बारम्बार प्रणाम,

जो नहीं ध्यावे तुम्हे अम्बिके, कहा उसे विश्राम ।

अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम,

प्रलय युगांतर और जन्मान्तर , कालांतर तक नाम ।

सुर असुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहं राम,

चुमहि चरण चतुर चतुरानन, चारू चक्रधर श्याम ।

चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखही ललाम,

देवी देव दयनीय दशा में, दया दया तब नाम ।

त्राहि त्राहि शरणागतवत्सल, शरणरूप तव धाम,

श्री ह्री श्रद्धा श्री ऐं, विद्या क्लीं कमला काम ।

कांती भ्रान्तिमयी कांति, शांतिमयीवर दे तू निष्काम ।

2. Annapurna Mata Ki Aarti Lyrics

Barambar Pranam Maiya, Barambar Pranam,

Jo nahi dhyawe tumhe Ambike, Kaha use Wishram.

Annapurna Devi nam tiharo, Let hot sab kam,

Pralay yugantar aur janmantar, Kalantar tak naam.

Sur asuron ki rachna karti, Kahna Krishn kahna Ram,

Chumhi charan chatur chaturanan, Charu chakradhar shyaam.

Chandrachood chandranan chaakar, Shobha lakhhi lalam.

Devi Dev dayniya dasha me, Daya daya tab naam.

Trahi Trahi sharnagat watsal, Sharan rup taw dhaam

Shri hi shraddha shri aen, widdha klin kamla kam.

Kanti bhrantimayi kanti, Shantimayiwar de tu nishkam.

3. श्री अन्नपुर्णा चालीसा लिरिक्स हिंदी में

॥ दोहा ॥

विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।

अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।

॥ चौपाई ॥

नित्य आनंद करिणी माता ।

वर अरु अभय भाव प्रख्याता ।।1

जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी ।

अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ।।2

श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि ।

संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ।।3

काशी पुराधीश्वरी माता ।

माहेश्वरी सकल जग त्राता ।।4

वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी ।

विश्व विहारिणि जय कल्याणी ।।5

पतिदेवता सुतीत शिरोमणि ।

पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ।।6

पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा ।

योग अग्नि तब बदन जरावा ।।7

देह तजत शिव चरण सनेहू ।

राखेहु जात हिमगिरि गेहू ।।8

प्रकटी गिरिजा नाम धरायो ।

अति आनंद भवन मँह छायो ।।9

नारद ने तब तोहिं भरमायहु ।

ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ।।10

ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये ।

देवराज आदिक कहि गाये ।।11

सब देवन को सुजस बखानी ।

मति पलटन की मन मँह ठानी ।।12

अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या ।

कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ।।13

निज कौ तब नारद घबराये ।

तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ।।14

करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ ।

संत बचन तुम सत्य परेखेहु ।।15

गगनगिरा सुनि टरी न टारे ।

ब्रहां तब तुव पास पधारे ।।16

कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा ।

देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ।।17

तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी ।

कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ।।18

अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों ।

है सौगंध नहीं छल तोसों ।।19

करत वेद विद ब्रहमा जानहु ।

वचन मोर यह सांचा मानहु ।।20

तजि संकोच कहहु निज इच्छा ।

देहौं मैं मनमानी भिक्षा ।।21

सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी ।

मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ।।22

बोली तुम का कहहु विधाता ।

तुम तो जगके स्रष्टाधाता ।।23

मम कामना गुप्त नहिं तोंसों ।

कहवावा चाहहु का मोंसों ।।24

दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा ।

शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ।।25

सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये ।

कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ।।26

तब गिरिजा शंकर तव भयऊ ।

फल कामना संशयो गयऊ ।।27

चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा ।

तब आनन महँ करत निवासा ।।28

माला पुस्तक अंकुश सोहै ।

कर मँह अपर पाश मन मोहै ।।29

अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे ।

अज अनवघ अनंत पूर्णे ।।30

कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ ।

भव विभूति आनंद भरी माँ ।।31

कमल विलोचन विलसित भाले ।

देवि कालिके चण्डि कराले ।।32

तुम कैलास मांहि है गिरिजा ।

विलसी आनंद साथ सिंधुजा ।।33

स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी ।

मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ।।34

विलसी सब मँह सर्व सरुपा ।

सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ।।35

जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा ।

फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ।।36

प्रात समय जो जन मन लायो ।

पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ।।37

स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत ।

परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ।।38

राज विमुख को राज दिवावै ।

जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ।।39

पाठ महा मुद मंगल दाता ।

भक्त मनोवांछित निधि पाता ।।40

॥ दोहा ॥

जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावैंगे माथ ।

तिनके कारज सिद्ध सब साखी काशी नाथ ॥

-: श्री अन्नपूर्णा चालीसा समाप्त :-

 

दोस्तों आज हमने श्री अन्नपुर्णा माता की आरती हिंदी व अंग्रेजी में जाना तथा साथ में चालीसा पाठ का भी आनंद लिया। आप अपनी राय या सुझाव हमें कामेंट बाक्स में बता सकते हैं।

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